[11] शीत युद्ध के बाद भारत की ईरान नीति:संतुलन, चुनौतियां और रणनीतिक स्वायत्तता
ARTICLE INFO: Date of Submission: August 20, 2025, Revised: September 26, 2025, Accepted: October 05, 2025, https://doi.org/10.56815/ijmrr.v4i3.2025.127-141
Abstract
१९९१ में शीत ;q) ख़त्म होने के बाद दुनिया एक बहुध्रुवीय दौर में प्रवेश कर गई, जहाँ कई देश वैश्विक शक्ति केंद्र बन कर उभरे। इस बदलाव ने भारत की विदेश नीति को गहरे तौर पर प्रभावित किया है खासकर ईरान के साथ उसके सम्बंधों को। ईरान भारत के लिए ऊर्जा, क्षेत्रीय संपर्क और बड़ी शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखने का एक अहम साझेदार रहा है। यह अध्ययन १९९१ से २०२५ तक भारत-ईरान सम्बंधों के विकास को समझाता है। इसमें सरकारी रिकॉर्ड, नीतिगत दस्तावेज़ों और शोध कार्यों का विश्लेषण किया गया है १९९० के दशक के शुरुआती समझौतों से लेकर चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी हाल की परियोजनाओं तक। अध्ययन बताता है कि भारत ने बड़ी सावधानी से अपने सम्बंधों का संतुलन बनाए रखा है। उसने एक ओर अमेरिका के प्रतिबंधों और अंतरराष्ट्रीय वोटिंग जैसी स्थितियों को संभाला है, वहीं दूसरी ओर इज़रायल, खाड़ी देशों और ईरान के साथ भी सम्बंध को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की है। भारत ने चीन के प्रभाव को सीमित करने के लिए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों का भी इस्तेमाल किया है। हालाँकि अमेरिका के प्रतिबंधों की वज़ह से तेल व्यापार और चाबहार बंदरगाह परियोजना प्रभावित हुई हैं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम और २०२५ में बढ़े इज़रायल-ईरान तनाव ने भी स्थिति को और जटिल बना दिया है। फिर भी भारत ने अपनी स्वतंत्र और व्यावहारिक नीति से कई लाभ हासिल किए हैं—जैसे INSTC के जरिए यूरेशिया तक ४०% तेज़ व्यापार मार्ग। अंत में यह अध्ययन सुझाव देता है कि भारत को कई देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखनी चाहिए। इससे वह बदलते वैश्विक माहौल में गुटनिरपेक्षता के आधुनिक और लचीले रूप को मज़बूत कर सकेगा। यह अध्ययन नीति-निर्माताओं और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी दिशा-निर्देश प्रदान करता है।













